घर क्या है?
घर क्या है?
घर कहाँ है?
शायद
वो यादों की गलियों में
कहीं छिपा है।
घर क्या होता है?
वो जो छोड़ते ही
दिल में टीस उठती
है,
दिल भारी हो जाता
है।
पर तब क्या, जब
इस घर से निकलने
पर भी टीस हो,
और जिस जगह जाना
है, वहाँ पहुँचने की
बेचैनी भी?
तब क्या, जब घर एक
से दो, दो से
तीन हो जाए,
और तुम अपना एक
टुकड़ा वहाँ छोड़ आओ,
जहाँ
रहना ही नहीं।
टीस
तो तब भी रहती
है।
छोटे
शहर से आने वाले,
अपनी
छोटी-सी दुनिया कहीं
पीछे छोड़ आते हैं।
जीवन
में सफलता की तलाश में,
कहीं
दूर निकल जाते हैं।
लौटने
की चाह तो होती
है,
पर समय नहीं।
और देखते ही देखते,
घर दूर कहीं पीछे
छूट जाता है।
अब तो सिर्फ कुछ
दिनों के लिए लौटते
हैं,
दीवाली
की मिठाइयाँ खाने,
और फिर वापस नए
घोंसलों की ओर।
ये छोटे-छोटे नए
ठिकाने भी घर जैसे
लगने लगते हैं।
एक से दूसरा, दूसरे
से तीसरा,
जीवन
चलता जाता है, नए
घोंसले बनते जाते हैं।
अब इन अस्थायी ठिकानों
को छोड़ने पर भी दिल
में टीस उठती है।
फिर
किसी दिन, राह चलते,
कोई
अजनबी मिल जाता है,
वो जो तुम्हारे गाँव
का हो।
उसके
साथ बातें करते-करते,
तुम्हारा
दिल फिर घर पहुँच
जाता है,
जहाँ
जाना तो मुमकिन नहीं,
पर दिल तरसता है।
वो अजनबी अपनी बातों में
घर ले जाता है,
और धीरे-धीरे, वो
अजनबी एक दोस्त बन
जाता है।
फिर
ऐसा लगता है कि
घर,
शायद घर की याद
में ही छिपा है।
जब इन यादों को
सँजोने वाला कोई मिल
जाए,
तो घर मिल जाता है।
04 September 2024
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