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घर क्या है?

  घर क्या है ?  घर कहाँ है ?   शायद वो यादों की गलियों में कहीं छिपा है।     घर क्या होता है ?   वो जो छोड़ते ही दिल में टीस उठती है ,   दिल  भारी हो जाता है।     पर तब क्या , जब इस घर से निकलने पर भी टीस हो ,   और जिस जगह जाना है , वहाँ पहुँचने की बेचैनी भी ?   तब क्या , जब घर एक से दो , दो से तीन हो जाए ,   और तुम अपना एक टुकड़ा वहाँ छोड़ आओ ,   जहाँ रहना ही नहीं।   टीस तो तब भी रहती है।     छोटे शहर से आने वाले ,   अपनी छोटी - सी दुनिया कहीं पीछे छोड़ आते हैं।   जीवन में सफलता की तलाश में , कहीं दूर निकल जाते हैं।   लौटने की चाह तो होती है , पर समय नहीं।   और देखते ही देखते , घर दूर कहीं पीछे छूट जाता है।   अब तो सिर्फ कुछ दिनों के लिए लौटते हैं ,   दीवाली की मिठाइयाँ खाने ,   और फिर वापस नए घोंसलो...